Friday, January 18, 2008

November 2007

25 व 26 सितम्बर को प्रोष्ठपदी पूर्णिमा दर्शन-सत्संग नई दिल्ली के राजौरी गार्डन के विशाल प्रांगण में हुआ। गीता को राष्ट्रीय ग्रंथ का दर्जा दिये जाने की इलाहाबाद उच्च न्यायालय की पहल का स्वागत करते हुए गीतामर्मज्ञ पूज्यश्री ने कहा- आप गीता, गौ और गंगा का फायदा लेना आरम्भ करें तो आपका शरीर स्वस्थ रहेगा, मन प्रसन्न रहेगा और बुद्धि में प्रखरता आएगी। गीता भगवान श्रीकृष्ण के श्रीमुख से निकली वह अमृतधारा है, जो युगों-युगों से भटकते हुए प्राणियों को श्रेष्ठ जीवन जीने की कला सिखा रही है।
26 सितम्बर को पूर्णिमा के अवसर पर दिल्ली के अलावा इन्दौर हवाई अड्डे व उज्जैन आश्रम पर भी हजारों पूनम व्रतधारी शिष्यों ने परम पूज्य सदगुरूदेव के दर्शन कर अपना व्रत पूर्ण किया। उल्लेखनीय है कि पूज्यश्री दिल्ली से जहाज द्वारा इन्दौर पहुँचे थे। तदुपरान्त देर रात उज्जैन आश्रम पहुँचे थे, जहाँ अगले ही दिन 27 से 30 सितम्बर तक साधना सत्संग समारोह संपन्न हुआ। नानाखेड़ा क्षेत्र में बने विशाल पंडाल से आध्यात्मिकता की रसधार संपूर्ण मालवा व निगाड़ क्षेत्र में प्रवाहित होती रही।
यहाँ उपस्थित भक्तों को ब्रह्मज्ञान के अमृतरस का पान कराने के बाद योगमर्मज्ञ पूज्य बापूजी ने व्यावहारिक ज्ञान पर प्रकाश डालते हुए कहा- आज के युवाधन की बड़ी हानि हो रही है। लोग क्लबों में नाचते हैं, फिर खड़े-खड़े पेप्सी, कोका आदि पीते हैं। यही स्थिति रही तो 40-42 साल की उम्र में हमारी नयी पीढ़ी कितनी पीड़ाओं का शिकार हो जाएगी – यह कहना मुश्किल है क्योंकि नाचते हैं तो शरीर गरम हो जाता है, फिर खड़े-खड़े पेप्सी आदि कोल्डड्रिंक्स पीते हैं तो तुरंत शरीर के तापमान में बदलाव आ जाता है। इसके दुष्प्रभाव से बुढ़ापा जल्दी आयेगा। खड़े-खड़े पानी पीते हैं तो आगे चलकर पैरों की पिंडलियों में दर्द की शिकायत होगी। फिर पैर दबवा-दबवाकर, भीख माँग-माँगकर नींद आएगी, नहीं तो दर्द निवारक (पेनकिल्लर) गोलियाँ खानी पड़ेंगी। वे भी तो नुक्सान करेंगी। मुझे मेरे शरीर की इतनी चिन्ता नहीं है, जितनी आने वाली पीढ़ी की, युवा पीढ़ी की चिन्ता है।
पूर्वनिर्धारित 3 दिवसीय कार्यक्रम समिति के विशेष आग्रह पर एक दिन बढ़ाया गया। इस दौरान राज्य के लोक निर्माण मन्त्री, शिक्षा राज्यमंत्री, उज्जैन विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष व अनेक गणमान्य व्यक्तियों तथा पुण्यात्माओं ने माल्यार्पण कर आशीर्वाद लिया।
28 सितम्बर आश्विन कृष्ण पक्ष दूज को पूज्यश्री के पिताश्री ब्रह्मलीन पूज्य थाऊमलजी सिरूमलानी का विधिवत श्राद्ध उज्जैन आश्रम में पूज्यश्री के करकमलों से संपन्न हुआ।
5-6 अकटूबर को मक्शी (म.प्र) में पहली बार आश्रम में भी पूज्यश्री का सत्संग हुआ। इस दौरान कायथा आश्रम में भी पूज्यश्री का पदार्पण हुआ। 8 अक्टूबर को ग्वालियर (म.प्र) पहुँचने पर हवाई अड्डे पर पूज्यश्री का आत्मीय स्वागत हुआ।
9-10 अक्टूबर को दो दिवसीय सत्संग ग्वालियर के नाम रहा। यहाँ वर्तमान समय को एक संगमकाल की संज्ञा देते हुए पूज्यश्री ने कहाः
पाश्चात्य की कितनी ही आँधियाँ आयें, हमारी संस्कृति अमर है। हम सत्य के अनुगामी हैं। भारत का भविष्य उज्जवल दिख रहा है। वर्तमान समय एक संगमकाल है। जिस प्रकार गंगा की लहर सारी गंदगी को अपने साथ ले जाती है, उसी प्रकार सारी बुराईयाँ हमारी सत्य सनातन संस्कृति के एक आवेग के साथ बह जाएगी।
मीडिया जगत के अच्छे लोगों का होंसला बुलन्द करते हुए पूज्यश्री ने कहाः
जिस प्रकार कई क्षेत्रों में गलत लोग घुस रहे हैं, वैसे ही मीडिया में भी अवांछनीय तत्त्व प्रवेश कर रहे हैं। इन्हीं तत्त्वों के कारण समाज में इसका प्रभाव घट रहा है और इसकी सच्चाई पर प्रश्नचिन्ह लग रहे हैं। मीडिया की अहम भूमिका का ठीक निर्वाहण तभी होगा, जब इसमें अवांछनीय तत्त्वों का प्रवेश बंद हो जाएगा। मीडिया के ठीक लोग अपनी सात्विक दिशा पर दृढ़ रहें, समाज सकारात्मक करवट लेगा ही।
11 अक्टूबर को ग्वालियर से सरमथुरा (राज.) जाते हुए धौलपुर और मुरैनावासियों ने भी दर्शन-सत्संग से कृत्कृत्यता का अनुभव किया। फिर शाम के सरमथुरा में सत्संगामृत की वर्षा हुई। स्थानीय ग्रामीण-श्रद्धालु लोकलाडले परम पूज्य बापूजी के अपने इस छोटे-से-गाँव में अपने बीच पाकर हर्षित-आनन्दित हुए। अगले दिन सुबह सरमथुरा आश्रम में मंत्रदीक्षा का कार्यक्रम संपन्न हुआ। तत्पश्चात 12 से 14 अक्तूबर को आयोजित 3 दिवसीय सत्संग हेतु पूज्यश्री आगरा आश्रम (उ.प्र) पहुँचे। यहाँ पूज्य बापूजी के दर्शन-सत्संग के लिए आस्था का सैलाव उमड़ पड़ा।
पूज्य बापूजी का साक्षात्कार दिवस 13 अक्तूबर आगरा के सत्संगियों के सौभाग्य में रहा। ऐसे तो पूज्यश्री का सत्संग सुनने के लिए भक्तजन हमेशा उत्कंठित रहते हैं लेकिन इस पावन दिन देश-विदेश के कई आश्रमों में लोगों ने विडियो कान्फ्रेन्स से सत्संग का लाभ लिया। जहाँ विडियो कानफ्रेंस से नहीं पहुँच पाया वहाँ टेलिफोन से सत्संग पहुँचा। अमदावाद आश्रम से पुछवाया गया कि मीठे प्रसाद में क्या-क्या बनायें?
पूज्य बापूजी ने सोचा कि यह साक्षात्कार दिवस नवरात्रि के दिन में आता है। देर से पचने वाले भारी या मीठे पदार्थ नहीं खाने चाहिए। नवरात्रि ऋतु-परिवर्तन काल है।
परम हितैषी पूज्य बापू जी ने कहाः
कोई व्यंजन नहीं बनाना। सादा-सूदा बनाकर खाओ, नहीं तो उपवास करना। अभी तक ईश्वरप्राप्ति की लगन नहीं लगी इसलिए रोना कि बापू जी ने तड़प-तड़प कर ईश्वर को पा लिया और हमने अभी तक नहीं पाया। रोना न आये तो झूठ-मूठ में रोना, कभी-न-कभी सच्चा रोना आ जाएगा और ईश्वर उसे स्वीकार कर लेगा। ह्रदय में ह्रदयेश्वर प्रकट भी हो जाएगा।
स्रोतः ऋषि प्रसाद नवम्बर 2007, संस्था समाचार

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