4 जनवरी को पूज्यश्री ने अमदावाद से डीसा (गुज.) की ओर प्रस्थान किया। मार्ग में गाँधीनगर, धामणवा व मेहसाणा आश्रमों को पूज्यश्री के आध्यात्मिक स्पंदनों का लाभ मिला। पूज्यश्री के डीसा प्रस्थान की खबर पहले ही मिलने से पालनपुर समिति और शहर के गणमान्य व्यक्ति मार्ग पर पूज्यश्री के पधारने का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे। वहाँ पहुँचते ही पुष्पहार व आरती से पूज्यश्री का भावभीना स्वागत हुआ। मेहसाणा, पालनपुर समितियों ने सत्संग-कार्यक्रम की अपनी पुरानी पुकार दुहरायी।
दर्शन-सत्संग का प्रसाद बाँटते हुए रात्रि को पूज्यश्री का डीसा में आगमन हुआ। पूर्व में यह स्थान 7 वर्ष तक पूज्यश्री का साधनास्थल रह चुका है।
5 व 6 जनवरी को सम्पन्न हुए इस सत्संग समारोह में पूज्यश्री ने कहाः निंदा ऐसी चीज है जो विष को भी मात कर दे। जहर जिस बोतल में रहता है उसका कुछ नहीं बिगड़ता, जो पीता है उसको मारता है लेकिन जो निंदा करता है उसका हृदय तो खराब होता ही है, सुनने वाले के मन और विचार भी बिगड़ते हैं। जिस किसी की बातें सुनना, करना, अपने दिमाग में जगत की सत्यता घुसेड़ना – ये हीन मनुष्यों के लक्षण हैं, तुच्छात्माओं के लक्षण हैं। जो परमात्मा के निमित्त ही सोच-विचार, परमात्मा के निमित्त ही सेवाकार्य और शक्ति का उपयोग करते हैं वे महान आत्मा हैं। जो मध्यम कर्र्म में अपना समय, शक्ति खर्च करते हैं वे मध्यम आत्मा हैं, मानव आत्मा हैं। मनुष्यात्मा रहना, तुच्छात्मा बनना या महान आत्मा बनना मनुष्य के हाथ में ही है।
7 जनवरी की शाम पूज्य बापू जी का रापर (गुज.) में आगमन हुआ। रापरवासी सत्संग-दर्शन से निहाल हुए। 8 जनवरी की दोपहर को ममुआरा (जि. भुज, गुज.) में बने आश्रम का उदघाटन पूज्यश्री के करकमलों से हुआ।
9 व 10 जनवरी को भुज के व्यायामशाला मैदान में लगे विशाल मंडप में दो दिवसीय सत्संग-यज्ञ का आयोजन हुआ। प्रथम सत्र में ही श्रद्धालुओं के उमड़े हुए सैलाब ने मंडप को नन्हा कर दिया था। संत-समागम और हरिकथा को दुर्लभ बताते हुए पूज्यश्री ने कहाः जिनको संतों-महापुरूषों का संग मिला है उनके जैसा भाग्यवान कोई नहीं। यदि जीवन में बड़ी कोई वस्तु मिले तो ही आप छोटी वस्तुओं को छोड़ सकते हो। आप संत-समागम व भक्ति पाकर ही दुःख, चिंता और विकारों से ऊपर उठ सकते हो।
10 जनवरी की शाम गाँधीधाम के नाम रही। 11 जनवरी को पूज्य बापू जी का आगमन अमदावाद आश्रम में हुआ। 13 से 16 जनवरी तक उत्तरायण ध्यान योग शिविर एवं 15 व 16 जनवरी को विद्यार्थी शिविर का आयोजन हुआ।
सभी साधकों को प्रातः पंचगव्य के प्रसाद के साथ ज्ञान-ध्यान का प्रसाद भी मिला। इस प्रकार इस शिविर में आंतरिक व बाह्य दोनों प्रकार के प्रसाद द्वारा तन की पुष्टि एवं अंतःकरण की शुद्धि में चार चाँद लगाने का सुंदर आयोजन किया गया था।
इस शिविर में पूज्यश्री व साधकों के बीच प्रश्नोत्तर का भी आयोजन हुआ। साधकों के जीवन की अनेक गुत्थियाँ पूज्यश्री ने सुलझायीं। परिप्रश्नेन सेवया... जो ज्ञान आत्मज्ञानी महापुरूषों की खूब सेवा करने पर मिलता था वह दिव्य, अमृतमय ज्ञान ज्ञाननिधान पूज्य बापू जी ने सहज में बरसा दिया।
पूज्यश्री ने सत्संग में परमात्मा की दयालुता पर प्रकाश डालाः गृहस्थ-जीवन के तीन सुख माने जाते हैं – आरोग्य-सुख, कौटुम्बिक संवादिता का सुख व संपदा का सुख। दयालु परमात्मा ये तीनों एक साथ किसी के पास नहीं रहने देता। वह जानता है कि यदि दे दूँ तो मेरे बच्चे इतने फँस जाएंगे, समय खराब करेंगे। आरोग्य अच्छा है तो कुटुम्ब में संवादिता होगी। संवादिता है, आरोग्य है तो आर्थिक गड़बड़ होगी। आर्थिक मामले में ठीक-ठाक है तो दूसरे दो सुखों में कुछ-न-कुछ ऊँचा-नीचा होकर वहाँ से गड़बड़ मिलेगी। सच्चे सुख के बिना परमात्मा हमारे चित्त को कहीं टिकने नहीं देता, यह उसकी कितनी कृपा है!
15 जनवरी को विद्यार्थियों ने पूज्यश्री के मुखारविंद से उत्तम विद्यार्थी के लक्षण जाने और स्मरणशक्ति बढ़ाने की नयी-नयी युक्तियाँ प्राप्त कीं। याद न रहने की समस्या का हल बताते हुए पूज्यश्री ने कहाः जिन विद्यार्थियों को पढ़ा हुआ याद नहीं रहता वे यदि पढ़ते समय जिह्वा को तालू से लगाकर पढ़ेंगे तो उन्हें पढ़ा हुआ याद रहने लगेगा।
20 मि.ली. तुलसी-रस अनार के रस में या गुनगुने पानी में च्यवनप्राश मिलाकर बनाये गये घोल में मिलाकर 40 दिन तक लें और सारस्वत्य मंत्र जपें तो यादशक्ति, बुद्धिशक्ति ऐसे विलक्षण लक्षणों से महकती है जिसका वर्णन शब्दों में नहीं होता।
19 व 20 जनवरी को तमिलनाडू की राजधानी चेन्नै में पूज्य बापू जी के सत्संग का आयोजन हुआ और पूज्यश्री के प्रत्यक्ष दर्शन-सत्संग का सुवर्ण अवसर पाकर तमिलनाडू, केरल, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक से बड़ी संख्या में श्रद्धालुजन उपस्थित हुए। यहाँ सत्संग के रसपान हेतु सनातन धर्म के 86 समाजों के लोग उपस्थित हुए थे। काँची कामकोटि पीठ के शंकराचार्य श्री जयेन्द्र सरस्वती भी सत्संग स्थल पर आये। उन्होंने कहाः बापूजी ध्यान, कीर्तन व सत्संग से समाज की नैतिक उन्नति और स्वास्थ्य का कितना ख्याल रखते हैं! मैंने अभी ऑपरेशन कराया है। मेरे यहाँ आते ही मुझे स्वास्थ्य लाभ का उपाय बताया। कैसा ख्याल रखते हैं सबका! स्नेह भी भरपूर, सरलता भी उतनी ही व सबको अपने लगते हैं।
पूज्य बापूजी ने यहाँ के लोगों को आध्यात्मिक ज्ञान के साथ स्वास्थ्य ज्ञान भी प्रदान किया।
21 व 22 जनवरी को देश की राजधानी दिल्ली में पौषी पूर्णिमा दर्शन-सत्संग सम्पन्न हुआ। 22 जनवरी की शाम को पूज्यश्री अमदावाद आश्रम में पहुँचे। यहाँ भी सत्संग एवं पूर्णिमा-दर्शन कार्यक्रम सम्पन्न हुआ। अमदावाद से चेन्नै, चेन्नै से दिल्ली, दिल्ली से अमदावाद एवं अमदावाद से हैदराबाद – इस प्रकार मानवमात्र को स्वस्थ, सुखी एवं सहज जीवन की प्राप्ति हो इस उद्देश्य से बापूजी स्वयं हवामान का बदलाव, लम्बे प्रवास का कष्ट सहन करते हैं। पूज्यश्री के जीवन में सर्वभूतहिते रताः ऊँचा आदर्श झलकता है।
स्रोतः ऋषि प्रसाद फरवरी 2008 पृष्ठ 30,31.
