Friday, January 18, 2008

December 2007

21 अक्तूबर को दशहरे के दिन पूज्यश्री सीकर (राज.) पहुँचे। स्थानीय श्री रामलीला मैदान के श्री रामलीला मंच पर एक शाम राम के नाम हुई।
शरद पूर्णिमा पर दर्शन-सत्संग 24 व 25 अक्तूबर को अमदावाद (गुज.) में व 26 से 28 अक्तूबर तक दिल्ली में सम्पन्न हुआ। शरद पूर्णिमा की रात्रि में चन्द्रमा की प्रखर किरणों से पुष्ट खीर की प्रसादी उपस्थित श्रद्धालुओं में वितरित की गयी। दमा के मरीजों को रोग निवारण हेतु आयुर्वैदिक औषधियों से युक्त विशेष खीर की प्रसादी निःशुल्क दी गयी। यह दवा दमा के मरीजों को प्रत्येक शरद पूर्णिमा पर दी जाती है। भारत भर के विभिन्न आश्रमों में भी दवा उपलब्ध करायी गयी। पूज्यश्री ने मधुर खीर के मधुविद्या का अध्यात्म-प्रसाद परोसते हुए अपने सच्चिदानंद स्वभाव को जाग्रत करने की सीख दी।
पूज्यश्री ने कहाः आप अपने साथ अन्याय न कीजिये। अपने साथ अन्याय क्या है? अपने स्वभाव को दबाना व अपने को पर-स्वभाव में उलझा देना यह अपने साथ अन्याय है। सत्-चित्-आनंद अपना स्वभाव है। अपने को असत्-जड़-दुःख से जोड़कर अपने साथ अन्याय करते हैं।
तीर्थराज पुष्कर के एकान्त आश्रम से ब्यावर (राज.) जाते हुए रास्ते में एक शाम नसीराबाद (राज.) के नाम रही। 3 व 4 नवम्बर को ब्यावर में पूज्यश्री की अमृतवाणी की ज्ञानगंगा बही। शब्दशक्ति की महिमा समझाते हुए पूज्यश्री बापूजी ने कहाः शब्दों में बड़ी अदभुत शक्ति है। शब्दों का उपयोग करके सेल्समेन सफल होते हैं, लोग बड़े-बड़े पदों पर पहुँच जाते हैं। इसमें बोलने वाले को अपनी शक्ति व अपनी सूझबूझ लगानी पड़ती है। शब्दों में मन्त्र ज़्यादा प्रभावी होता है। इससे दैवी शक्तियों का अनुग्रह प्राप्त होता है। मंत्र में जापक की लगन आवश्यक है परंतु इससे भी ज़्यादा भगवान की सत्ता काम करती है। अगर कोई अनर्गल शब्द बोले तो उसे लोग दुत्कारेंगे परंतु दुष्ट चित्तवाला मनुष्य भी अगर दुर्भावपूर्वक भी हरिनाम का उच्चारण करता है तो उसके समस्त पापों का हरण होता है।
4 नवम्बर को भंडारे के साथ ही सत्संग की पूर्णाहुति करके पूज्यश्री मांडल आश्रम (राज.) होते हुए भीलवाड़ा (राज.) पहुँचे। वहाँ 5 व 6 नवम्बर को ज्ञान-भक्ति-योगवर्षा से भीलवाड़ावासी धनभागी हुए।
7 नवम्बर की शाम नाथद्वारा (राज.) के नाम रही। इस अल्प समय के लिए प्राप्त दर्शन-सत्संग से स्थानीय श्रद्धालुवृंद श्रद्धा-प्रेम से अभिभूत नज़र आये। एक सत्र के इस कार्यक्रम में विराट जनमेदनी उमड़ पड़ी। 7 नवम्बर को धनतेरस के दिन सारा देश पंच-दिवसीय पर्वपुंज दीपावली के शुभारंभ में निमग्न था तो गरीबनवाज पूज्य बापूजी भीलवाड़ा आश्रम से रवाना हुए गरीब-आदिवासी बहुल क्षेत्र गोगुन्दा के लिए। अगले दिन छोटी दीपावली को यहाँ विशाल भंडारा हुआ। जिसमें गोगुंदा (राज.) व आसपास के हजारों गरीब-आदिवासी सम्मिलित हुए। आदिवासियों का शोषण देखकर प्राणिमात्र के परम हितैषी पूज्य बापूजी का ह्रदय द्रवीभूत हो गया। मानव-जीवन को सफल बनाने से लिए पूज्य बापूजी ने भक्ति व जप की महिमा समझायी। पूज्यश्री ने आदिवासियों को दुःख में भी सुखी रहने तथा अभाव में भी प्रसन्न रहने की कला सिखायी।
पूज्यश्री के प्रत्यक्ष मार्गदर्शन में भंडारा सम्पन्न हुआ। भोजनोपरान्त अन्न, वस्त्र, कम्बल, मिठाईयाँ, दैनिक जीवनोपयोगी अनेक सामग्री व दक्षिणा (नगद राशी) आदि वितरित की गयी।
9 नवम्बर, कार्तिक कृष्णपक्ष अमावस्या अर्थात 5 दिवसीय पर्वपुंज दीपावली का प्रमुख दिन। इस दिन जहाँ एक ओर सम्पर्ण देशवासी अपने घर-आँगन को दीपों की जगमगाहट से सजाने-सँवारने में, हर्षोल्लास में सराबोर थे, वहीं दूसरी ओर पूज्यश्री तथा उनके लाडले भक्तवृंद और आश्रमवासी कोटडा (राज.) के अत्यन्त पिछड़े, गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन करने वाले आदिवासियों के बीच पहुँचे। उन्हें भरपेट भोजन कराकर, उनकी संतुष्टि से ही अपनी तृप्ति व प्रसन्नता का अनुभव करते हुए सेवारत भाईयों-बहनों ने खूब उत्साह का परिचय दिया। पूज्यश्री ने भक्ति व कीर्तन की भावगंगा बहायी। आदिवासियों को उनके उज्जवल इतिहास का परिचय कराते हुए पूज्यश्री बापू जी ने कहाः महाभारतकाल में भारतवासी सोने के बर्तनों में भोजन करते थे। विदेशी लुटेरों द्वारा भौतिक सम्पदा लुट जाने के बाद भी आज बाहर से गरीब दिखने वाले आदिवासी दिल के अमीर हैं। साधु-संतों की सेवा में, भक्ति में अभी भी अमीर हैं।
पूज्य बापूजी ने आगे कहाः मैं आज दीपावली की सुबह यहाँ सूर्योदय के पूर्व घूमने निकला तो चारों तरफ से रूदन सुनायी दिया। किसी ने बताया कि जो मर चुके हैं उनकी याद में पर्व के दिन यहाँ रोने का रिवाज़ है।
यह किसी विधर्मी का षड्यंत्र है क्योंकि शास्त्रों में पर्व के दिन रोने की मनाही है। पर्व के दिन आनन्द मनाओ। मैं तो आप सबको सुखी देखना चाहता हूँ। यही मेरी दीवाली है।
गरीबों-आदिवासियों में कपड़े, कम्बल, तेल, जूते-चप्पल, राशन, बर्तन, मिठाई, मोमबत्ती, दक्षिणा (नगद राशी) आदि जीवनोपयोगी सामग्री वितरित की गयी। 9 नवम्बर की शाम पूज्यश्री बापूजी का अमदावाद आश्रम में पदार्पण हुआ। साधकों ने हाथ में दीप लेकर पूज्य बापूजी का स्वागत किया। भौतिक दीवाली का उद्देश्य बताते हुए पूज्यश्री ने कहाः व्यवहारिक दीवाली के पीछे हमारा उद्देश्य पारमार्थिक दीवाली का है। विकारों का, अज्ञान का दिवाला निकल जाए और आत्मसुख की जगमगाहट का अनुभव हो जाए, दीवाली मनाने का यही उद्देश्य रहा है।
दीवाली तथा नूतन वर्ष के पर्व पर पूज्यश्री ने भौतिक सुख के साथ आध्यात्मिक उन्नति की प्रेरणा व मार्गदर्शन भी दिया।
17 नवम्बर की सुबह 9.20 बजे ताजपुरा (गुज.) के 101 वर्षीय पूज्य नारायण बापू ब्रह्मलीन हो गये। अगले दिन हुए इन दिव्य विभूति के अंतिम संस्कार के अवसर पर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करने पूज्य बापूजी ताजपुरा पहुँचे। अदृश्य होने के साथ अनेक दिव्य शक्तियों के स्वामी अपने मित्रसंत को पूज्यश्री ने भावभीनी श्रद्धांजलि दी। इस अवसर पर आबू की गुफा में उनके साथ बिताए दिन याद कर पूज्यश्री ने अपने व उनके बीच के आत्मीय संबंधों की चर्चा की।
18 नवम्बर के ककरोलिया (बोड़ेली, गुज.) स्थित नवनिर्मित आश्रम में पूज्य बापूजी का पदार्पण हुआ। पूज्य बापूजी इस शांत, एकान्त प्रदूषणरहित वातावरण में 3 दिन रहे। यहाँ वराछा मंडली द्वारा 20 नवम्बर की सुबह भक्ति-जागृति यात्रा निकाली गयी। शाम को सत्संग का एक सत्र सम्पन्न हुआ।
18 नवम्बर को बड़ौदा (गुज.) में श्री सुरेशानंदजी के नेतृत्व में विशाल संकीर्तन यात्रा निकाली गयी। मंगल प्रतीक सुसज्जित कलश लिए महिलाएँ, पूज्यश्री की आकर्षक झाँकियों से सुसज्ज अनेक वाहन, बाल संस्कार केन्द्र के बच्चों द्वारा प्रदर्शित झाँकियाँ, व्यसनमुक्ति झाँकियाँ आदि संकीर्तन यात्रा में आकर्षण के केन्द्र रहे। एक प्रमुख आकर्षण रही श्री सुरेशानंद जी की संगीतबद्ध स्वरलहरियाँ और उन पर थिरकते पूज्य बापूजी के हजारों दीवाने। जिस मार्ग से भी ये दीवाने गुजरते थे वहाँ का वातावरण हरिमय हो जाता था। लोग बरबस घर से बाहर अथवा छत पर खिँचे चले आते थे। जो वहाँ मौजूद नहीं थे, वे भी इस आनंदमय संकीर्तन यात्रा के उन आनंदित क्षणों को वी.सी.डी. से देखकर स्वयं आनंदित हो सकते हैं।
22 से 25 नवम्बर तक बड़ौदा (गुज.) में विशाल सत्संग समारोह सम्पन्न हुआ। प्रथम दो दिन विद्यार्थी शिविर में गुजरात के अलावा देश के अनेक प्रांतों से बड़ी संख्या में विद्यार्थी सम्मिलित हुए। श्रद्धालुओं की विराट संख्या को देखते हुए समिति ने विशाल मंडप बनाया था। सुचारू ध्वनि-व्यवस्था के साथ ही पर्याप्त संख्या में क्लोज़ सर्किट टी.वी. व विडियो प्रोजेक्टर भी लगाए गए थे। पूज्यश्री ने जहाँ एक ओर विद्यार्थीयों को विद्या के क्षेत्र में तरक्की के गुर बताये वहीं दूसरी ओर उपस्थित श्रद्धालुओं को जीवन में आनेवाले खट्टे-मीठे अनुभवों में सम व प्रसन्न रहने की सीख दी।
ब्रह्मविद्या के मर्मज्ञ पूज्यश्री ने अपनी अनुभव-सम्पन्न अमृतवाणी में अध्यात्म विद्या का प्रसाद बाँटा। शरीर स्वस्थ, मन प्रसन्न और बुद्धि एकाग्र करने की अनेक युक्तियाँ परम पूज्य बापूजी ने बतायीं। पूज्यश्री ने विद्यार्थीयों में शुभ संस्कारों का सिंचन करते हुए छात्र-छात्राओं के प्रति अभिरूचि को देखते हुए कहाः भारतीय संस्कृति के संस्कारों से सुसज्ज और वैदिक ज्ञान से सुसम्पन्न आज के विद्यार्थी ही निकट भविष्य में समग्र विश्व के तमाम क्षेत्रों में अग्रणी होंगे।
29 व 30 नवम्बर को पेटलावद (म.प्र.) में दो दिवसीय सत्संग संपन्न हुआ। यहाँ के भक्तों की वर्षों की गुहार फलित हुई और 17 वर्ष के बाद पूज्य बापूजी यहाँ आये। 1 व 2 दिसम्बर को रतलाम (म.प्र) में पूज्यश्री की आत्मस्पर्शी अमृतवाणी से संपूर्ण मालवा क्षेत्र सराबोर हुआ। मध्य प्रदेश के गृह एवं परिवहन मंत्री व पूज्य बापूजी के पुराने साधक श्री हिम्मत कोठारी ने भी मंत्रमुग्ध होकर सत्संग-अमृत का रसपान किया तथा पूज्यश्री का प्यार भरा आशीर्वाद प्राप्त कर धन्यता का अनुभव किय़ा।
स्रोतः ऋषि प्रसाद दिसम्बर 2007, संस्था समाचार।

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