Friday, January 18, 2008

January 2008

ऋषि प्रसाद प्रतिनिधि
सुसनेर (म.प्र.) समिति द्वारा पूज्य बापू जी का सत्संग पाने हेतु पिछले 14 वर्षों से जारी तपस्या का सुफल उन्हें तब प्राप्त हुआ जब उन्हें 8 व 9 दिसम्बर के सत्संग कार्यक्रम की तारीख मिली।
जिस प्रकार भगवान श्री कृष्ण अपने प्रेमी गोप-गोपियों के बीच पहुँच जाते तो वे सब अपने शरीर की सुध-बुध खो बैठते थे, ऐसे ही भक्तवृंद अपने आराध्य पूज्य बापू जी को अपने बीच पाकर देहभान भूल गये। उनके नेत्ररूपी सीपों में अश्रुरूपी मोती चमक रहे थे।
स्थानीय जनों के लिए यहाँ की गौशाला में बनी कुटिया में ब्रह्मस्वरूप साँईं आसारामजी का आगमन शबरी की बनायी छोटी-सी कुटिया में प्रभु श्रीरामजी के आगमन से समान महा आनंद का अवसर रहा। प्रतीक्षापूर्ति के आनंद से सराबोर हो वे अपने दिल के देवता की एक झलक पाने के लिए हर संभव कोशिश कर रहे थे।
उनकी प्रेमाभक्ति को देखकर प्रसन्न हुए पूज्य बापूजी ने उन्हें भक्ति में चार चाँद लगाने के गुर बतायेः भक्ति के बाद अंतर में विश्राम नहीं पाने से, मनन न करने से भक्ति गहरी नहीं होती। भक्ति का फल प्राप्त करना हो तो पूजा-पाठ, जप-ध्यान करने के बाद कुछ समय शांत बैठकर अंतर में विश्रांति पानी चाहिए, अपने निःसंकल्प नारायणस्वरूप में विश्राम पाना चाहिए।
यहाँ के अभावग्रस्तों को मदद का हाथ मिले, इस उद्देश्य से पूज्य बापूजी ने प्रतिवर्ष यहां भंडारे (भोजन-प्रसाद वितरण) का आयोजन करने की आज्ञा दी।
रास्ते में उज्जैन (म.प्र.) से 60 कि.मी. दूर पर स्थित आगर मालवा (म.प्र.) के साधकों ने पूज्यश्री से प्रार्थना की कि वे बैजनाथ भगवान की इस पुण्यनगरी में पधार कर भक्तजनों को सत्संग-अमृत का लाभ दें। करूणा-सागर पूज्य बापूजी ने उनकी अभिलाषा पूरी की।

छिंदवाड़ा (म.प्र.) में 15 व 16 दिसम्बर के दो दिवसीय ज्ञानयज्ञ में पूज्य बापूजी के आत्मानुभवस्पर्शी वचनामृत का पान करने आये श्रद्धालुओं ने दो लाख की क्षमता वाले इस शहर का सबसे बड़ा मैदान भी छोटा बना दिया। क्यों न बनायें जब आनंदधन संतश्री के चैतन्यमय दरबार में सदा ही दीवाली मनती रहती है और आठों पहर आनंद में निमग्न रहने की कुंजी भी मिल जाती है।
पूज्य बापू जी के वचनामृत में आयाः सत्संग और संतकृपा से तुच्छ जीव को भी ईश्वरप्राप्ति हो सकती है। महर्षि वेदव्यास जी की आज्ञा से नाली के एक कीड़े ने मृत्यु का आलिंगन किया और उनकी कृपा से वह नये जन्म में पुराणों में सुप्रसिद्ध महर्षि मैत्रेय बनकर पूजित, सम्मानित हुआ। कहाँ तो पनाली का कीड़ा और कहाँ विकास की पराकाष्ठा, प्रभुप्राप्ति, प्रभुप्राप्ति, प्रभुत्त्व का पूर्ण ज्ञान।
पूज्यश्री ने सत्संग में मानव-जीवन के बहुआयामी विकास हेतु आवश्यक शरीर-स्वास्थ्य से लेकर आत्मविश्रांति तक के सभी पहलुओं पर प्रकाश डाला। पूज्यश्री ने साधकों को जहाँ आदर-अनादर, निंदा-स्तुति में सम रहने के गुर बताये, वहीं सप्तधान्य उबटन बनाने की विधि भी समझायी।
लोकसंत गरीबनिवाज पूज्य बापूजी गन्ना उपज बेचने की किसानों की समस्या सुनकर व्यथित हुए। उन्होंने यह भी सुना कि पिछले कुछ वर्षों से यहाँ गन्ना जलाने की नौबत आ गयी थी। इन समस्याओं पर अपनी संवेदनशीलता व्यक्त करते हुए पूज्यश्री ने कहाः जिले में नयी शूगर मिल लगवायी जानी चाहिए और गुढ़ उद्योग को बढ़ावा दिया जाना चाहिए, जिससे किसानों का मनोबल बना रहे।
पूज्य बापू जी ने घर में तुलसी का पौधा रोपित करने और एक पीपल लगाने से 10 अन्य वृक्षों की शुद्ध हवा का लाभ बताया।
संत श्री आसारामजी गुरूकुल, छिंदवाड़ा के छात्र-छात्राओं ने यहाँ अनेक मनोवेधक सांस्कृतिक कार्यक्रम एव योगासन प्रस्तुत किये, जिन्हें देखकर सभी मंत्रमुग्ध हुए। व्यक्तित्व विकास परीक्षा में प्रथम व द्वितीय स्थान पाने वाले विद्यार्थियों को पूज्य बापूजी के कर कमलों से पुरस्कार प्राप्त हुए।
पूज्य बापूजी यवतमाल (महा.) मार्ग से बैतूल जायेंगे, यह जानकारी प्राप्त होते ही यवतमाल समिति ने अपनी क्षेत्रीय जनता को भी सत्संग का लाभ मिले इस उद्देश्य से पूज्य बापूजी को प्रार्थना की। विनती स्वीकार होते ही अत्यन्य कम समय में यवतमाल के पोस्टल मैदान पर सत्संग मंडप खड़ा किया गया। पूज्य बापू जी के 17 दिसम्बर के आगमन की वार्ता वायु-वेग से विदर्भ क्षेत्र के कोने-कोने तक पहुँची और श्रद्धालुओं के समूह सत्संग मंडप की ओर इस प्रकार गतिशील हो गये, मानों श्रद्धा की सरिताएँ अपने प्राणप्रिय ज्ञानसिंधु से एकाकार होने उमड़ पड़ी हों।
पूज्यश्री ने वास्तविक संपदा पर प्रकाश डालाः शरीर व मन सुदृढ़ रखने के लिए शुद्ध हवा, पौष्टिक आहार व आध्यात्मिक विचार आवश्यक हैं। यही सच्ची संपत्ति है।
सत्संग में जनसैलाब उमड़ता गया, पंडाल बढ़ता गया, आखिर चहुँ ओर कनातें और परदे खुलवाने का आदेश देते हुए पूज्य बापूजी ने कहाः परदा नहीं जब खुदा से तो बापू से परदा करना क्या ?
वहाँ से परदा हटा दिया गया और फिर संत-भगवंत एवं साधक-सत्संगियों के बीच मधुर लीलाओं व श्रद्धापूरित भावों के साथ यवतमाल-नागपुर मार्ग पर स्थित बेलोना गाँव की भूमि भी पूज्यश्री के पावन पादस्पर्श से पावन हुई। यहाँ नवनिर्मित आश्रम का उदघाटन पूज्यश्री के पावन कर कमलों से संपन्न हुआ।
बैतूल (म.प्र) में 18 व 19 दिसम्बर को सत्संग समारोह आयोजित हुआ। यहाँ पूज्यश्री ने जीवन में पुरूषार्थ की महत्ता का प्रतिपादन कियाः सदाचार और शास्त्रसम्मत पुरूषार्थ से अपनी सफलता का मार्ग प्रशस्त करना चाहिए। सफलतारूपी लक्ष्मी हमेशा पुरूषार्थी व्यक्ति का ही वरण करती है।
आलस्य, प्रमाद या पलायनवादिता को झाड़ फैंकें। पुरूषार्थ ही परमदेव है। बीते हुए कल का पुरूषार्थ आज का प्रारब्ध है। सफलता मिलने पर उसका गर्व नहीं करना चाहिए और विफलता में विषादयुक्त न होकर समता व धैर्य से पुनः सावधानीपूर्वक विकट प्रयत्न करना चाहिए।
सतशास्त्र और सदाचार अनुरूप पुरूषार्थ के भिन्न-भिन्न पहलुओं पर पूज्य बापू जी ने प्रकाश डाला।
22 दिसम्बर की शाम से 25 दिसम्बर तक तापी के तट पर सूरत (गुज.) में सहज सत्संग साधना समारोह व पूनम दर्शन संपन्न हुआ। नासिक (महा.) व आस-पास से कई समितयाँ यहाँ पैदल आयी थीं। कोई सूरत से 250 कि.मी. तो कोई 300 कि.मी. दूर से आये सैंकडों-सैंकड़ों पैदलयात्रियों की तपस्या से पूज्यश्री का दिल पसीजा। 6 से 9 मार्च महाशिवरात्रि सत्संग साधना शिविर नासिक (महाराष्ट्र) की झोली में आया। प्रेमाभक्ति के पंख लगे चित्तों से ज्ञानगगन में उड़ान भरायी अलख के औलिया पूज्य बापू जी ने। सारतत्त्व में, सारस्वरूप परमात्मा में सहज विश्रांति और प्रेमस्वरूप प्रभु का सहज ज्ञान-प्रकाश सुनते-देखते ही बनता था। पूनम व्रतधारियों को पंचगव्य-पान, दूसरे दिन आँवला रसपान, तीसरे दिन भी गौदुग्ध, दही, घी आदि से बना मन और मति को शुद्ध करने वाला आरोग्यदायी पंचगव्य का जलपान, जो साधारण रोग तो क्या अस्थि तक के रोगों को उखाड़ देने में सक्षम है। वैदिक मंत्र और विधि से पंचगव्य प्रसाद पानेवाले पूर्ण तृप्त और संतुष्ट नज़र आये।
अमदावाद (गुज.) आश्रम में उत्तरायण ध्यान योग साधना शिविर में आश्रम की गायों व अन्य गायों के दूध, दही, गोमय, घी आदि से बना पंचगव्य सभी को पिलाने का पूज्य बापू जी ने आदेश दिया है। 13 से 16 जनवरी तक अमदावाद आश्रम में पंचगव्यसहित ज्ञान और ध्यान पायेंगे प्रभु के प्यारे, बापू के दुलारे।
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December 2007

21 अक्तूबर को दशहरे के दिन पूज्यश्री सीकर (राज.) पहुँचे। स्थानीय श्री रामलीला मैदान के श्री रामलीला मंच पर एक शाम राम के नाम हुई।
शरद पूर्णिमा पर दर्शन-सत्संग 24 व 25 अक्तूबर को अमदावाद (गुज.) में व 26 से 28 अक्तूबर तक दिल्ली में सम्पन्न हुआ। शरद पूर्णिमा की रात्रि में चन्द्रमा की प्रखर किरणों से पुष्ट खीर की प्रसादी उपस्थित श्रद्धालुओं में वितरित की गयी। दमा के मरीजों को रोग निवारण हेतु आयुर्वैदिक औषधियों से युक्त विशेष खीर की प्रसादी निःशुल्क दी गयी। यह दवा दमा के मरीजों को प्रत्येक शरद पूर्णिमा पर दी जाती है। भारत भर के विभिन्न आश्रमों में भी दवा उपलब्ध करायी गयी। पूज्यश्री ने मधुर खीर के मधुविद्या का अध्यात्म-प्रसाद परोसते हुए अपने सच्चिदानंद स्वभाव को जाग्रत करने की सीख दी।
पूज्यश्री ने कहाः आप अपने साथ अन्याय न कीजिये। अपने साथ अन्याय क्या है? अपने स्वभाव को दबाना व अपने को पर-स्वभाव में उलझा देना यह अपने साथ अन्याय है। सत्-चित्-आनंद अपना स्वभाव है। अपने को असत्-जड़-दुःख से जोड़कर अपने साथ अन्याय करते हैं।
तीर्थराज पुष्कर के एकान्त आश्रम से ब्यावर (राज.) जाते हुए रास्ते में एक शाम नसीराबाद (राज.) के नाम रही। 3 व 4 नवम्बर को ब्यावर में पूज्यश्री की अमृतवाणी की ज्ञानगंगा बही। शब्दशक्ति की महिमा समझाते हुए पूज्यश्री बापूजी ने कहाः शब्दों में बड़ी अदभुत शक्ति है। शब्दों का उपयोग करके सेल्समेन सफल होते हैं, लोग बड़े-बड़े पदों पर पहुँच जाते हैं। इसमें बोलने वाले को अपनी शक्ति व अपनी सूझबूझ लगानी पड़ती है। शब्दों में मन्त्र ज़्यादा प्रभावी होता है। इससे दैवी शक्तियों का अनुग्रह प्राप्त होता है। मंत्र में जापक की लगन आवश्यक है परंतु इससे भी ज़्यादा भगवान की सत्ता काम करती है। अगर कोई अनर्गल शब्द बोले तो उसे लोग दुत्कारेंगे परंतु दुष्ट चित्तवाला मनुष्य भी अगर दुर्भावपूर्वक भी हरिनाम का उच्चारण करता है तो उसके समस्त पापों का हरण होता है।
4 नवम्बर को भंडारे के साथ ही सत्संग की पूर्णाहुति करके पूज्यश्री मांडल आश्रम (राज.) होते हुए भीलवाड़ा (राज.) पहुँचे। वहाँ 5 व 6 नवम्बर को ज्ञान-भक्ति-योगवर्षा से भीलवाड़ावासी धनभागी हुए।
7 नवम्बर की शाम नाथद्वारा (राज.) के नाम रही। इस अल्प समय के लिए प्राप्त दर्शन-सत्संग से स्थानीय श्रद्धालुवृंद श्रद्धा-प्रेम से अभिभूत नज़र आये। एक सत्र के इस कार्यक्रम में विराट जनमेदनी उमड़ पड़ी। 7 नवम्बर को धनतेरस के दिन सारा देश पंच-दिवसीय पर्वपुंज दीपावली के शुभारंभ में निमग्न था तो गरीबनवाज पूज्य बापूजी भीलवाड़ा आश्रम से रवाना हुए गरीब-आदिवासी बहुल क्षेत्र गोगुन्दा के लिए। अगले दिन छोटी दीपावली को यहाँ विशाल भंडारा हुआ। जिसमें गोगुंदा (राज.) व आसपास के हजारों गरीब-आदिवासी सम्मिलित हुए। आदिवासियों का शोषण देखकर प्राणिमात्र के परम हितैषी पूज्य बापूजी का ह्रदय द्रवीभूत हो गया। मानव-जीवन को सफल बनाने से लिए पूज्य बापूजी ने भक्ति व जप की महिमा समझायी। पूज्यश्री ने आदिवासियों को दुःख में भी सुखी रहने तथा अभाव में भी प्रसन्न रहने की कला सिखायी।
पूज्यश्री के प्रत्यक्ष मार्गदर्शन में भंडारा सम्पन्न हुआ। भोजनोपरान्त अन्न, वस्त्र, कम्बल, मिठाईयाँ, दैनिक जीवनोपयोगी अनेक सामग्री व दक्षिणा (नगद राशी) आदि वितरित की गयी।
9 नवम्बर, कार्तिक कृष्णपक्ष अमावस्या अर्थात 5 दिवसीय पर्वपुंज दीपावली का प्रमुख दिन। इस दिन जहाँ एक ओर सम्पर्ण देशवासी अपने घर-आँगन को दीपों की जगमगाहट से सजाने-सँवारने में, हर्षोल्लास में सराबोर थे, वहीं दूसरी ओर पूज्यश्री तथा उनके लाडले भक्तवृंद और आश्रमवासी कोटडा (राज.) के अत्यन्त पिछड़े, गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन करने वाले आदिवासियों के बीच पहुँचे। उन्हें भरपेट भोजन कराकर, उनकी संतुष्टि से ही अपनी तृप्ति व प्रसन्नता का अनुभव करते हुए सेवारत भाईयों-बहनों ने खूब उत्साह का परिचय दिया। पूज्यश्री ने भक्ति व कीर्तन की भावगंगा बहायी। आदिवासियों को उनके उज्जवल इतिहास का परिचय कराते हुए पूज्यश्री बापू जी ने कहाः महाभारतकाल में भारतवासी सोने के बर्तनों में भोजन करते थे। विदेशी लुटेरों द्वारा भौतिक सम्पदा लुट जाने के बाद भी आज बाहर से गरीब दिखने वाले आदिवासी दिल के अमीर हैं। साधु-संतों की सेवा में, भक्ति में अभी भी अमीर हैं।
पूज्य बापूजी ने आगे कहाः मैं आज दीपावली की सुबह यहाँ सूर्योदय के पूर्व घूमने निकला तो चारों तरफ से रूदन सुनायी दिया। किसी ने बताया कि जो मर चुके हैं उनकी याद में पर्व के दिन यहाँ रोने का रिवाज़ है।
यह किसी विधर्मी का षड्यंत्र है क्योंकि शास्त्रों में पर्व के दिन रोने की मनाही है। पर्व के दिन आनन्द मनाओ। मैं तो आप सबको सुखी देखना चाहता हूँ। यही मेरी दीवाली है।
गरीबों-आदिवासियों में कपड़े, कम्बल, तेल, जूते-चप्पल, राशन, बर्तन, मिठाई, मोमबत्ती, दक्षिणा (नगद राशी) आदि जीवनोपयोगी सामग्री वितरित की गयी। 9 नवम्बर की शाम पूज्यश्री बापूजी का अमदावाद आश्रम में पदार्पण हुआ। साधकों ने हाथ में दीप लेकर पूज्य बापूजी का स्वागत किया। भौतिक दीवाली का उद्देश्य बताते हुए पूज्यश्री ने कहाः व्यवहारिक दीवाली के पीछे हमारा उद्देश्य पारमार्थिक दीवाली का है। विकारों का, अज्ञान का दिवाला निकल जाए और आत्मसुख की जगमगाहट का अनुभव हो जाए, दीवाली मनाने का यही उद्देश्य रहा है।
दीवाली तथा नूतन वर्ष के पर्व पर पूज्यश्री ने भौतिक सुख के साथ आध्यात्मिक उन्नति की प्रेरणा व मार्गदर्शन भी दिया।
17 नवम्बर की सुबह 9.20 बजे ताजपुरा (गुज.) के 101 वर्षीय पूज्य नारायण बापू ब्रह्मलीन हो गये। अगले दिन हुए इन दिव्य विभूति के अंतिम संस्कार के अवसर पर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करने पूज्य बापूजी ताजपुरा पहुँचे। अदृश्य होने के साथ अनेक दिव्य शक्तियों के स्वामी अपने मित्रसंत को पूज्यश्री ने भावभीनी श्रद्धांजलि दी। इस अवसर पर आबू की गुफा में उनके साथ बिताए दिन याद कर पूज्यश्री ने अपने व उनके बीच के आत्मीय संबंधों की चर्चा की।
18 नवम्बर के ककरोलिया (बोड़ेली, गुज.) स्थित नवनिर्मित आश्रम में पूज्य बापूजी का पदार्पण हुआ। पूज्य बापूजी इस शांत, एकान्त प्रदूषणरहित वातावरण में 3 दिन रहे। यहाँ वराछा मंडली द्वारा 20 नवम्बर की सुबह भक्ति-जागृति यात्रा निकाली गयी। शाम को सत्संग का एक सत्र सम्पन्न हुआ।
18 नवम्बर को बड़ौदा (गुज.) में श्री सुरेशानंदजी के नेतृत्व में विशाल संकीर्तन यात्रा निकाली गयी। मंगल प्रतीक सुसज्जित कलश लिए महिलाएँ, पूज्यश्री की आकर्षक झाँकियों से सुसज्ज अनेक वाहन, बाल संस्कार केन्द्र के बच्चों द्वारा प्रदर्शित झाँकियाँ, व्यसनमुक्ति झाँकियाँ आदि संकीर्तन यात्रा में आकर्षण के केन्द्र रहे। एक प्रमुख आकर्षण रही श्री सुरेशानंद जी की संगीतबद्ध स्वरलहरियाँ और उन पर थिरकते पूज्य बापूजी के हजारों दीवाने। जिस मार्ग से भी ये दीवाने गुजरते थे वहाँ का वातावरण हरिमय हो जाता था। लोग बरबस घर से बाहर अथवा छत पर खिँचे चले आते थे। जो वहाँ मौजूद नहीं थे, वे भी इस आनंदमय संकीर्तन यात्रा के उन आनंदित क्षणों को वी.सी.डी. से देखकर स्वयं आनंदित हो सकते हैं।
22 से 25 नवम्बर तक बड़ौदा (गुज.) में विशाल सत्संग समारोह सम्पन्न हुआ। प्रथम दो दिन विद्यार्थी शिविर में गुजरात के अलावा देश के अनेक प्रांतों से बड़ी संख्या में विद्यार्थी सम्मिलित हुए। श्रद्धालुओं की विराट संख्या को देखते हुए समिति ने विशाल मंडप बनाया था। सुचारू ध्वनि-व्यवस्था के साथ ही पर्याप्त संख्या में क्लोज़ सर्किट टी.वी. व विडियो प्रोजेक्टर भी लगाए गए थे। पूज्यश्री ने जहाँ एक ओर विद्यार्थीयों को विद्या के क्षेत्र में तरक्की के गुर बताये वहीं दूसरी ओर उपस्थित श्रद्धालुओं को जीवन में आनेवाले खट्टे-मीठे अनुभवों में सम व प्रसन्न रहने की सीख दी।
ब्रह्मविद्या के मर्मज्ञ पूज्यश्री ने अपनी अनुभव-सम्पन्न अमृतवाणी में अध्यात्म विद्या का प्रसाद बाँटा। शरीर स्वस्थ, मन प्रसन्न और बुद्धि एकाग्र करने की अनेक युक्तियाँ परम पूज्य बापूजी ने बतायीं। पूज्यश्री ने विद्यार्थीयों में शुभ संस्कारों का सिंचन करते हुए छात्र-छात्राओं के प्रति अभिरूचि को देखते हुए कहाः भारतीय संस्कृति के संस्कारों से सुसज्ज और वैदिक ज्ञान से सुसम्पन्न आज के विद्यार्थी ही निकट भविष्य में समग्र विश्व के तमाम क्षेत्रों में अग्रणी होंगे।
29 व 30 नवम्बर को पेटलावद (म.प्र.) में दो दिवसीय सत्संग संपन्न हुआ। यहाँ के भक्तों की वर्षों की गुहार फलित हुई और 17 वर्ष के बाद पूज्य बापूजी यहाँ आये। 1 व 2 दिसम्बर को रतलाम (म.प्र) में पूज्यश्री की आत्मस्पर्शी अमृतवाणी से संपूर्ण मालवा क्षेत्र सराबोर हुआ। मध्य प्रदेश के गृह एवं परिवहन मंत्री व पूज्य बापूजी के पुराने साधक श्री हिम्मत कोठारी ने भी मंत्रमुग्ध होकर सत्संग-अमृत का रसपान किया तथा पूज्यश्री का प्यार भरा आशीर्वाद प्राप्त कर धन्यता का अनुभव किय़ा।
स्रोतः ऋषि प्रसाद दिसम्बर 2007, संस्था समाचार।

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November 2007

25 व 26 सितम्बर को प्रोष्ठपदी पूर्णिमा दर्शन-सत्संग नई दिल्ली के राजौरी गार्डन के विशाल प्रांगण में हुआ। गीता को राष्ट्रीय ग्रंथ का दर्जा दिये जाने की इलाहाबाद उच्च न्यायालय की पहल का स्वागत करते हुए गीतामर्मज्ञ पूज्यश्री ने कहा- आप गीता, गौ और गंगा का फायदा लेना आरम्भ करें तो आपका शरीर स्वस्थ रहेगा, मन प्रसन्न रहेगा और बुद्धि में प्रखरता आएगी। गीता भगवान श्रीकृष्ण के श्रीमुख से निकली वह अमृतधारा है, जो युगों-युगों से भटकते हुए प्राणियों को श्रेष्ठ जीवन जीने की कला सिखा रही है।
26 सितम्बर को पूर्णिमा के अवसर पर दिल्ली के अलावा इन्दौर हवाई अड्डे व उज्जैन आश्रम पर भी हजारों पूनम व्रतधारी शिष्यों ने परम पूज्य सदगुरूदेव के दर्शन कर अपना व्रत पूर्ण किया। उल्लेखनीय है कि पूज्यश्री दिल्ली से जहाज द्वारा इन्दौर पहुँचे थे। तदुपरान्त देर रात उज्जैन आश्रम पहुँचे थे, जहाँ अगले ही दिन 27 से 30 सितम्बर तक साधना सत्संग समारोह संपन्न हुआ। नानाखेड़ा क्षेत्र में बने विशाल पंडाल से आध्यात्मिकता की रसधार संपूर्ण मालवा व निगाड़ क्षेत्र में प्रवाहित होती रही।
यहाँ उपस्थित भक्तों को ब्रह्मज्ञान के अमृतरस का पान कराने के बाद योगमर्मज्ञ पूज्य बापूजी ने व्यावहारिक ज्ञान पर प्रकाश डालते हुए कहा- आज के युवाधन की बड़ी हानि हो रही है। लोग क्लबों में नाचते हैं, फिर खड़े-खड़े पेप्सी, कोका आदि पीते हैं। यही स्थिति रही तो 40-42 साल की उम्र में हमारी नयी पीढ़ी कितनी पीड़ाओं का शिकार हो जाएगी – यह कहना मुश्किल है क्योंकि नाचते हैं तो शरीर गरम हो जाता है, फिर खड़े-खड़े पेप्सी आदि कोल्डड्रिंक्स पीते हैं तो तुरंत शरीर के तापमान में बदलाव आ जाता है। इसके दुष्प्रभाव से बुढ़ापा जल्दी आयेगा। खड़े-खड़े पानी पीते हैं तो आगे चलकर पैरों की पिंडलियों में दर्द की शिकायत होगी। फिर पैर दबवा-दबवाकर, भीख माँग-माँगकर नींद आएगी, नहीं तो दर्द निवारक (पेनकिल्लर) गोलियाँ खानी पड़ेंगी। वे भी तो नुक्सान करेंगी। मुझे मेरे शरीर की इतनी चिन्ता नहीं है, जितनी आने वाली पीढ़ी की, युवा पीढ़ी की चिन्ता है।
पूर्वनिर्धारित 3 दिवसीय कार्यक्रम समिति के विशेष आग्रह पर एक दिन बढ़ाया गया। इस दौरान राज्य के लोक निर्माण मन्त्री, शिक्षा राज्यमंत्री, उज्जैन विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष व अनेक गणमान्य व्यक्तियों तथा पुण्यात्माओं ने माल्यार्पण कर आशीर्वाद लिया।
28 सितम्बर आश्विन कृष्ण पक्ष दूज को पूज्यश्री के पिताश्री ब्रह्मलीन पूज्य थाऊमलजी सिरूमलानी का विधिवत श्राद्ध उज्जैन आश्रम में पूज्यश्री के करकमलों से संपन्न हुआ।
5-6 अकटूबर को मक्शी (म.प्र) में पहली बार आश्रम में भी पूज्यश्री का सत्संग हुआ। इस दौरान कायथा आश्रम में भी पूज्यश्री का पदार्पण हुआ। 8 अक्टूबर को ग्वालियर (म.प्र) पहुँचने पर हवाई अड्डे पर पूज्यश्री का आत्मीय स्वागत हुआ।
9-10 अक्टूबर को दो दिवसीय सत्संग ग्वालियर के नाम रहा। यहाँ वर्तमान समय को एक संगमकाल की संज्ञा देते हुए पूज्यश्री ने कहाः
पाश्चात्य की कितनी ही आँधियाँ आयें, हमारी संस्कृति अमर है। हम सत्य के अनुगामी हैं। भारत का भविष्य उज्जवल दिख रहा है। वर्तमान समय एक संगमकाल है। जिस प्रकार गंगा की लहर सारी गंदगी को अपने साथ ले जाती है, उसी प्रकार सारी बुराईयाँ हमारी सत्य सनातन संस्कृति के एक आवेग के साथ बह जाएगी।
मीडिया जगत के अच्छे लोगों का होंसला बुलन्द करते हुए पूज्यश्री ने कहाः
जिस प्रकार कई क्षेत्रों में गलत लोग घुस रहे हैं, वैसे ही मीडिया में भी अवांछनीय तत्त्व प्रवेश कर रहे हैं। इन्हीं तत्त्वों के कारण समाज में इसका प्रभाव घट रहा है और इसकी सच्चाई पर प्रश्नचिन्ह लग रहे हैं। मीडिया की अहम भूमिका का ठीक निर्वाहण तभी होगा, जब इसमें अवांछनीय तत्त्वों का प्रवेश बंद हो जाएगा। मीडिया के ठीक लोग अपनी सात्विक दिशा पर दृढ़ रहें, समाज सकारात्मक करवट लेगा ही।
11 अक्टूबर को ग्वालियर से सरमथुरा (राज.) जाते हुए धौलपुर और मुरैनावासियों ने भी दर्शन-सत्संग से कृत्कृत्यता का अनुभव किया। फिर शाम के सरमथुरा में सत्संगामृत की वर्षा हुई। स्थानीय ग्रामीण-श्रद्धालु लोकलाडले परम पूज्य बापूजी के अपने इस छोटे-से-गाँव में अपने बीच पाकर हर्षित-आनन्दित हुए। अगले दिन सुबह सरमथुरा आश्रम में मंत्रदीक्षा का कार्यक्रम संपन्न हुआ। तत्पश्चात 12 से 14 अक्तूबर को आयोजित 3 दिवसीय सत्संग हेतु पूज्यश्री आगरा आश्रम (उ.प्र) पहुँचे। यहाँ पूज्य बापूजी के दर्शन-सत्संग के लिए आस्था का सैलाव उमड़ पड़ा।
पूज्य बापूजी का साक्षात्कार दिवस 13 अक्तूबर आगरा के सत्संगियों के सौभाग्य में रहा। ऐसे तो पूज्यश्री का सत्संग सुनने के लिए भक्तजन हमेशा उत्कंठित रहते हैं लेकिन इस पावन दिन देश-विदेश के कई आश्रमों में लोगों ने विडियो कान्फ्रेन्स से सत्संग का लाभ लिया। जहाँ विडियो कानफ्रेंस से नहीं पहुँच पाया वहाँ टेलिफोन से सत्संग पहुँचा। अमदावाद आश्रम से पुछवाया गया कि मीठे प्रसाद में क्या-क्या बनायें?
पूज्य बापूजी ने सोचा कि यह साक्षात्कार दिवस नवरात्रि के दिन में आता है। देर से पचने वाले भारी या मीठे पदार्थ नहीं खाने चाहिए। नवरात्रि ऋतु-परिवर्तन काल है।
परम हितैषी पूज्य बापू जी ने कहाः
कोई व्यंजन नहीं बनाना। सादा-सूदा बनाकर खाओ, नहीं तो उपवास करना। अभी तक ईश्वरप्राप्ति की लगन नहीं लगी इसलिए रोना कि बापू जी ने तड़प-तड़प कर ईश्वर को पा लिया और हमने अभी तक नहीं पाया। रोना न आये तो झूठ-मूठ में रोना, कभी-न-कभी सच्चा रोना आ जाएगा और ईश्वर उसे स्वीकार कर लेगा। ह्रदय में ह्रदयेश्वर प्रकट भी हो जाएगा।
स्रोतः ऋषि प्रसाद नवम्बर 2007, संस्था समाचार

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