Friday, January 18, 2008

January 2008

ऋषि प्रसाद प्रतिनिधि
सुसनेर (म.प्र.) समिति द्वारा पूज्य बापू जी का सत्संग पाने हेतु पिछले 14 वर्षों से जारी तपस्या का सुफल उन्हें तब प्राप्त हुआ जब उन्हें 8 व 9 दिसम्बर के सत्संग कार्यक्रम की तारीख मिली।
जिस प्रकार भगवान श्री कृष्ण अपने प्रेमी गोप-गोपियों के बीच पहुँच जाते तो वे सब अपने शरीर की सुध-बुध खो बैठते थे, ऐसे ही भक्तवृंद अपने आराध्य पूज्य बापू जी को अपने बीच पाकर देहभान भूल गये। उनके नेत्ररूपी सीपों में अश्रुरूपी मोती चमक रहे थे।
स्थानीय जनों के लिए यहाँ की गौशाला में बनी कुटिया में ब्रह्मस्वरूप साँईं आसारामजी का आगमन शबरी की बनायी छोटी-सी कुटिया में प्रभु श्रीरामजी के आगमन से समान महा आनंद का अवसर रहा। प्रतीक्षापूर्ति के आनंद से सराबोर हो वे अपने दिल के देवता की एक झलक पाने के लिए हर संभव कोशिश कर रहे थे।
उनकी प्रेमाभक्ति को देखकर प्रसन्न हुए पूज्य बापूजी ने उन्हें भक्ति में चार चाँद लगाने के गुर बतायेः भक्ति के बाद अंतर में विश्राम नहीं पाने से, मनन न करने से भक्ति गहरी नहीं होती। भक्ति का फल प्राप्त करना हो तो पूजा-पाठ, जप-ध्यान करने के बाद कुछ समय शांत बैठकर अंतर में विश्रांति पानी चाहिए, अपने निःसंकल्प नारायणस्वरूप में विश्राम पाना चाहिए।
यहाँ के अभावग्रस्तों को मदद का हाथ मिले, इस उद्देश्य से पूज्य बापूजी ने प्रतिवर्ष यहां भंडारे (भोजन-प्रसाद वितरण) का आयोजन करने की आज्ञा दी।
रास्ते में उज्जैन (म.प्र.) से 60 कि.मी. दूर पर स्थित आगर मालवा (म.प्र.) के साधकों ने पूज्यश्री से प्रार्थना की कि वे बैजनाथ भगवान की इस पुण्यनगरी में पधार कर भक्तजनों को सत्संग-अमृत का लाभ दें। करूणा-सागर पूज्य बापूजी ने उनकी अभिलाषा पूरी की।

छिंदवाड़ा (म.प्र.) में 15 व 16 दिसम्बर के दो दिवसीय ज्ञानयज्ञ में पूज्य बापूजी के आत्मानुभवस्पर्शी वचनामृत का पान करने आये श्रद्धालुओं ने दो लाख की क्षमता वाले इस शहर का सबसे बड़ा मैदान भी छोटा बना दिया। क्यों न बनायें जब आनंदधन संतश्री के चैतन्यमय दरबार में सदा ही दीवाली मनती रहती है और आठों पहर आनंद में निमग्न रहने की कुंजी भी मिल जाती है।
पूज्य बापू जी के वचनामृत में आयाः सत्संग और संतकृपा से तुच्छ जीव को भी ईश्वरप्राप्ति हो सकती है। महर्षि वेदव्यास जी की आज्ञा से नाली के एक कीड़े ने मृत्यु का आलिंगन किया और उनकी कृपा से वह नये जन्म में पुराणों में सुप्रसिद्ध महर्षि मैत्रेय बनकर पूजित, सम्मानित हुआ। कहाँ तो पनाली का कीड़ा और कहाँ विकास की पराकाष्ठा, प्रभुप्राप्ति, प्रभुप्राप्ति, प्रभुत्त्व का पूर्ण ज्ञान।
पूज्यश्री ने सत्संग में मानव-जीवन के बहुआयामी विकास हेतु आवश्यक शरीर-स्वास्थ्य से लेकर आत्मविश्रांति तक के सभी पहलुओं पर प्रकाश डाला। पूज्यश्री ने साधकों को जहाँ आदर-अनादर, निंदा-स्तुति में सम रहने के गुर बताये, वहीं सप्तधान्य उबटन बनाने की विधि भी समझायी।
लोकसंत गरीबनिवाज पूज्य बापूजी गन्ना उपज बेचने की किसानों की समस्या सुनकर व्यथित हुए। उन्होंने यह भी सुना कि पिछले कुछ वर्षों से यहाँ गन्ना जलाने की नौबत आ गयी थी। इन समस्याओं पर अपनी संवेदनशीलता व्यक्त करते हुए पूज्यश्री ने कहाः जिले में नयी शूगर मिल लगवायी जानी चाहिए और गुढ़ उद्योग को बढ़ावा दिया जाना चाहिए, जिससे किसानों का मनोबल बना रहे।
पूज्य बापू जी ने घर में तुलसी का पौधा रोपित करने और एक पीपल लगाने से 10 अन्य वृक्षों की शुद्ध हवा का लाभ बताया।
संत श्री आसारामजी गुरूकुल, छिंदवाड़ा के छात्र-छात्राओं ने यहाँ अनेक मनोवेधक सांस्कृतिक कार्यक्रम एव योगासन प्रस्तुत किये, जिन्हें देखकर सभी मंत्रमुग्ध हुए। व्यक्तित्व विकास परीक्षा में प्रथम व द्वितीय स्थान पाने वाले विद्यार्थियों को पूज्य बापूजी के कर कमलों से पुरस्कार प्राप्त हुए।
पूज्य बापूजी यवतमाल (महा.) मार्ग से बैतूल जायेंगे, यह जानकारी प्राप्त होते ही यवतमाल समिति ने अपनी क्षेत्रीय जनता को भी सत्संग का लाभ मिले इस उद्देश्य से पूज्य बापूजी को प्रार्थना की। विनती स्वीकार होते ही अत्यन्य कम समय में यवतमाल के पोस्टल मैदान पर सत्संग मंडप खड़ा किया गया। पूज्य बापू जी के 17 दिसम्बर के आगमन की वार्ता वायु-वेग से विदर्भ क्षेत्र के कोने-कोने तक पहुँची और श्रद्धालुओं के समूह सत्संग मंडप की ओर इस प्रकार गतिशील हो गये, मानों श्रद्धा की सरिताएँ अपने प्राणप्रिय ज्ञानसिंधु से एकाकार होने उमड़ पड़ी हों।
पूज्यश्री ने वास्तविक संपदा पर प्रकाश डालाः शरीर व मन सुदृढ़ रखने के लिए शुद्ध हवा, पौष्टिक आहार व आध्यात्मिक विचार आवश्यक हैं। यही सच्ची संपत्ति है।
सत्संग में जनसैलाब उमड़ता गया, पंडाल बढ़ता गया, आखिर चहुँ ओर कनातें और परदे खुलवाने का आदेश देते हुए पूज्य बापूजी ने कहाः परदा नहीं जब खुदा से तो बापू से परदा करना क्या ?
वहाँ से परदा हटा दिया गया और फिर संत-भगवंत एवं साधक-सत्संगियों के बीच मधुर लीलाओं व श्रद्धापूरित भावों के साथ यवतमाल-नागपुर मार्ग पर स्थित बेलोना गाँव की भूमि भी पूज्यश्री के पावन पादस्पर्श से पावन हुई। यहाँ नवनिर्मित आश्रम का उदघाटन पूज्यश्री के पावन कर कमलों से संपन्न हुआ।
बैतूल (म.प्र) में 18 व 19 दिसम्बर को सत्संग समारोह आयोजित हुआ। यहाँ पूज्यश्री ने जीवन में पुरूषार्थ की महत्ता का प्रतिपादन कियाः सदाचार और शास्त्रसम्मत पुरूषार्थ से अपनी सफलता का मार्ग प्रशस्त करना चाहिए। सफलतारूपी लक्ष्मी हमेशा पुरूषार्थी व्यक्ति का ही वरण करती है।
आलस्य, प्रमाद या पलायनवादिता को झाड़ फैंकें। पुरूषार्थ ही परमदेव है। बीते हुए कल का पुरूषार्थ आज का प्रारब्ध है। सफलता मिलने पर उसका गर्व नहीं करना चाहिए और विफलता में विषादयुक्त न होकर समता व धैर्य से पुनः सावधानीपूर्वक विकट प्रयत्न करना चाहिए।
सतशास्त्र और सदाचार अनुरूप पुरूषार्थ के भिन्न-भिन्न पहलुओं पर पूज्य बापू जी ने प्रकाश डाला।
22 दिसम्बर की शाम से 25 दिसम्बर तक तापी के तट पर सूरत (गुज.) में सहज सत्संग साधना समारोह व पूनम दर्शन संपन्न हुआ। नासिक (महा.) व आस-पास से कई समितयाँ यहाँ पैदल आयी थीं। कोई सूरत से 250 कि.मी. तो कोई 300 कि.मी. दूर से आये सैंकडों-सैंकड़ों पैदलयात्रियों की तपस्या से पूज्यश्री का दिल पसीजा। 6 से 9 मार्च महाशिवरात्रि सत्संग साधना शिविर नासिक (महाराष्ट्र) की झोली में आया। प्रेमाभक्ति के पंख लगे चित्तों से ज्ञानगगन में उड़ान भरायी अलख के औलिया पूज्य बापू जी ने। सारतत्त्व में, सारस्वरूप परमात्मा में सहज विश्रांति और प्रेमस्वरूप प्रभु का सहज ज्ञान-प्रकाश सुनते-देखते ही बनता था। पूनम व्रतधारियों को पंचगव्य-पान, दूसरे दिन आँवला रसपान, तीसरे दिन भी गौदुग्ध, दही, घी आदि से बना मन और मति को शुद्ध करने वाला आरोग्यदायी पंचगव्य का जलपान, जो साधारण रोग तो क्या अस्थि तक के रोगों को उखाड़ देने में सक्षम है। वैदिक मंत्र और विधि से पंचगव्य प्रसाद पानेवाले पूर्ण तृप्त और संतुष्ट नज़र आये।
अमदावाद (गुज.) आश्रम में उत्तरायण ध्यान योग साधना शिविर में आश्रम की गायों व अन्य गायों के दूध, दही, गोमय, घी आदि से बना पंचगव्य सभी को पिलाने का पूज्य बापू जी ने आदेश दिया है। 13 से 16 जनवरी तक अमदावाद आश्रम में पंचगव्यसहित ज्ञान और ध्यान पायेंगे प्रभु के प्यारे, बापू के दुलारे।
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